दहेज़
-आनंद कुमार
(1)
पत्नी
जज साहब,
हाँ, शादी से पहले मेरा एक बॉयफ्रेंड था। हाँ, यह बात मैंने अपने पति से छुपाये रखा। क्यों रखा ? शायद आप ये खुद समझ सकते हैं। मैं इस शादी के लिए राज़ी नहीं थी पर मुझे अपनी मम्मी-पापा के जिद के आगे झुकना पड़ा। मैं दहेज़ के लिए राज़ी नहीं थी पर फिर मुझे झुकना पड़ा। सौदेबाज़ी हुई। दहेज़ दिया गया पर पूरा दहेज़ नहीं दिया गया। शादी फिर भी हो गयी। मेरे पापा ने वादा किया की जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी वो क़र्ज़ चुका देंगे। विदाई हुए और मेरे मम्मी -पापा, मुझे और दहेज़ दोनों भूल गए।
(2)
पति
यह मेरा घर हैं और यह मेरी दुकान हैं और यही मेरी दुनिया हैं ; और इस दुनिया में हमने एक नए मेहमान का स्वागत किया जब मैं छब्बीस का था। अरैंज मैरिज थीं। शादी के वक़्त न मैं उसे जनता था ना वो मुझे जानती थीं। सब कुछ सही जा रहा था। ऐसा लग रहा था कि प्यार भी हो रहा हैं , पर तभी एक खुलासे ने सारे फरेब से पर्दा हटा दिया। मुझे याद है वो रात। वो पलंग के एक कोने पर बैठी थीं। मैं गुस्से से कमरे में दाखिल हुआ। इरादा तो खून करने का था, पर दिल कमजोर पर गया। शायद प्यार करने लगा था उससे। दो-चार थप्पड़ मार के ही रह गया। लेकिन गुस्से से मेरा सर फटा जा रहा था। मेरे लिए उसे बर्दास्त करना मुश्किल हो रहा था। सो मैंने उसे घर से बाहर निकल दिया। इतना दुःख हो रहा था मुझे अपने ऊपर ,इतना गुस्सा आ रहा था मुझे अपने ऊपर कि मैं एक ऐसी लड़की से प्यार कर बैठा !
उस दिन शरीफों में एक मैं भी शहीद हुआ। उस दिन शराबियों में एक नाम मेरा भी शुमार हुआ। उस दिन जाकर समझ आया कि कड़वी होने पर भी लोग शराब क्यों पीते हैं ? मैं इधर तलाक़ की तैयारी कर रहा था , उधर एक दिन पुलिस मेरे घर आयी। मुझपर यह इल्ज़ाम था की मैंने दहेज़ के लिए अपनी पत्नी को पीटा और उसे घर से बाहर निकाल दिया। मेरे पैरों तले ज़मीन ख़िसक गयी। कुछ समझ नहीं आया। हाँ, यह सच हैं कि दहेज़ ली गयी थी , यह भी सच कि पूरा दहेज़ नहीं दिया गया था पर ये सरासर झूठ हैं कि पैसों के लिए मैंने कभी उस पर हाथ उठाया। उल्टे उसने मेरे साथ धोखा किया था। ये क्या मजाक है !
धीरे-धीरे बात समझ में आयी। जो पाप उसने किया था, उसकी बदनामी से बचने के लिए, उसने अपने चेहरे की कालिख मेरे चेहरे पर पोत दी। खेल ही बदल गया। बलि को ही शिकारी बना कर दुनिया के सामने खड़ा कर दिया। मैं रोया, चिल्लाया पर दुनिया एक 'अबला' नारी की बात सुनती या एक मर्द की अलापे। मैं सिर्फ इतना पूछना चाहता हूँ की क्या औरत गलत काम नहीं कर सकती, क्या मर्द को सताया नहीं जा सकता? सच है, अगर समाज मर्दो का है, तो कानून औरतों का।
केश चलता रहा। साबित कुछ भी नहीं हुआ था पर समाज ने अपना फैसला पहले ही सुना दिया था। जिन दोस्त का मुझसे बाते किये बगैर दिन नहीं बनता था, वो नज़ारे मिलाने से हिचकने लगे। मेरा नाम एक भद्दी गली बन कर रह गयी। मुझे नौकरी से निकल दिया गया। इज़्ज़त के नाम पर कुछ नहीं बचा। बचा तो सिर्फ कुछ फ़ाइल जिन्हे लिए में चार साल तक कोर्ट में हज़ारी देता रहा।
चार साल बाद, मुझे कोर्ट ने बाइज़्ज़त बरी कर दी। पर अब समझ नहीं आता की इंसाफ लेकर क्या करू। दुकान तो वकील के फीस भरते-भरते निकल गयी। नौकरी है नहीं और दुनिया मौका देगी नहीं।
इस बीच मेरी एक्स- वाइफ की दोबारा शादी हो गयी और वो खुश है। बस, भगवान् उस आदमी को बचाये रखे जिसने उसका रास्ता कटा है।
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