Depression
आनंद कुमार
कुछ कहना तो है,
पर पता नहीं क्या ?
कुछ तो मन में भरा है,
कुछ तो निकलने के लिए दिल मसोस रहा है,
पर कोई आवाज़ नहीं निकलती
कोई शब्द पन्ने पर नहीं उतरती
भाव का भी पता नहीं चलता -
कुछ गलतियों का अफसोश है
कुछ खोने का दुख
या अखबार में पढ़े थे जो गुनाहो के किस्से,
उसका ये असर है।
फेसबुक पर कितने मीम देख लिए,
इंस्टा की खाक छान ली
अँधेरे में अकेले में बैठा,
दोस्तों के साथ हँस भी लिया,
पर अपने आप से बच नहीं पाया।
कुछ कहना तो हैं
पर पता नहीं क्या ?
भाव का कोई वेग नहीं है।
गहराई तो है पर कोई संगीत नहीं है।
हर चीज़ गतिमान है पर किसी में जान नहीं है।
बस एक अनंत सन्नाटा सा है...
शायद अंदर से मारा हुआ इंसान कुछ ऐसा ही महसूस करता होगा।
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