12 Jan 2019

Monologue

                                          दाग़ 

                                                                          - आनंद कुमार 


( स्टेज पर एक टेबल हैं । उसपर कुछ किताबें  पड़ी है और टेबल के पीछे एक कुर्सी पड़ा है। रोहन आईने में अपने चेहरा देख रहा है। उसकी पीठ ऑडियंस की तरफ है। )

16 अगस्त 2016 . मैं  रात के वक़्त घर लौट रहा था। तभी एक आदमी अँधेरे से निकला और  मुझपे हमला करने लगा।  चाकू कहाँ - कहाँ लगी याद नहीं।  याद है तो बस दर्द, चीखें और अगली सुबह हॉस्पिटल के बेड पर जागना।  एक महीने बाद जब बैंडेज हटे तो कुछ जख्म भर चुके थे और कुछ ...

(आईना बगल में रखे टेबल पर रख कर, दर्शक की तरफ मुड़ते हुए....  )

कभी नहीं भरने वाले थे। मैं हमेशा से ऐसा नहीं था।  मैं  हिन्दू था पर धर्म के झगड़े में, मैं किसी दाल में शामिल नहीं था। मुझे इन सब चीज़ो से ..... 

( वह एक किताब में पड़े कुछ लेटर्स को देख कर, भटक-सा जाता है।  उन्हें किताबो से निकलता है और एक को पढ़ने लगता हैं। )

रोहन,
       कल तुम मिलने नहीं आये, अच्छे नहीं लगा। 

नौशिल।  नौशिल। .... नौशिल रज़ा नाम था उसका।  प्यार करते थे हमलोग एक दूसरे से पर उसके पापा को हिन्दुओं से नफरत थी। (जेब से माचिस निकलते हुए ... ) एक बार उन्होंने हमें पकड़ लिया। मैं उनसे कह दिया की मैं आपकी बेटी से प्यार करता हूँ। उससे शादी करना चाहता  हूँ। वे गुस्साये, चिल्लाये और बोले अगर मेरी बेटी से शादी करना चाहते हो तो पहले धर्म बदलना होगा ..... 

(जब बार-बार माचिस नहीं जलती, तो गुस्से से वो माचिस और सरे पत्र फेंक देता है। एक तरफ देखता है जैसे कुछ ढूँढ रहा हो। फिर कुर्सी लेकर स्टेज के दूसरे तरफ जाता है।  कुर्सी पर चढ़ कर हवा में ही, एक काल्पनिक अलमीरा में कुछ ढूढने लगता है। )

धर्म बदलना होगा। मुझे धर्म बदलने में कोई परेशानी नहीं थी पर धर्म बदलना संभव नहीं था।  न माँ मानती, न पापा समझते।  पर जवानी के दिन थे मिलना जारी रहा।और एक रात जब मैं काम से लौट रहा था तो नौशिल के पापा अँधेरे से निकले और चाकू से अपना निशान मरते चेहरे पर छोड़ गए। 

पहले मुझे लगता था की हिंदू कट्टरपंथी देश की शांति (कुर्सी पर से उतारते हुए...... ) भंग कर रहे है। पर जब मेरे साथ ये हुआ तो पता चला कि सच, सच से कितना दूर है। अगर आज मुस्लिम के साथ कुछ बुरा होता है तो मीडिया से लेकर बॉलीवुड स्टार तक सभी उसके पीछे खड़े हो जायेंगे कि माइनॉरिटी के साथ ये हो रहा है, माइनॉरिटी के साथ वो हो रहा है। अरे, माइनॉरिटी तो यहूदी भी है, पारसी भी हैं। उनके साथ तो कुछ बुरा नहीं हो रहा। लोग सच नहीं जानना चाहते, बस मान लेते  है कि उन्हें सताया जा रहा है और इन सताए हुए लोगों ने करेला के एक प्रोफेसर, टी.ज. जोसफ का दाहिना हाथ काट दिया था। क्युँकि उन्हें लगा था कि उसने प्रोफेट मुहम्मद की बेज़्ज़ती की है। ये चेहरे डरे हुए लोगों के नहीं है। ये उन लोगों के है जिन्हे पता है की कल हिंदुस्तान मुस्लिम राष्ट्र बन जायेगा और बनेगा। जहाँ -जहाँ मुस्लिम आबादी बढ़ी है, वहाँ -वहाँ सेक्लुरिस्म का अंत हुआ है। क्या हुआ कश्मीरी पंडितो के साथ ? पलेस्टाइन पहले एक ज्यूइश देश था, अफगानिस्तान पहले एक बौद्ध देश था, egypt पहले एक क्रिस्चियन देश था और आज सब के सब  मुस्लिम राष्ट्र हैं। मुस्लिम कट्टरपंथी  बढ़ रहे है और हम एक बहुत बड़ी समस्या को 'टेररिज्म हैज नो रिलिजन' कह टाल रहे है; और सदियों से यही किया है। मंदिर के ईटों से मस्जिद की दीवारे खड़ी की गयी और हम बर्दास्त  करते रहे। कभी डराके, कभी लालच देकर हिन्दू खून में इस्लाम भरा गया और हम बर्दास्त करते रहे।  हम बर्दास्त करते रही और हमारे देश के दो टुकड़े हो गये। 

                                  हाँ, बदल गया था मैं !बदल गया था मैं ! अपने चेहरे पर मुस्लिम कट्टरपंत का दाग लिए  मैं गली गली घूमता रहा। आने वाले खतरे के बारे में लोगो को बताता रहा। मैंने उन्हें इकठ्ठा किया और आग फैला दी। इस बीच एक दस साल की हिन्दू बच्ची का, दो मुस्लिम युवकों ने बलात्कार कर दिया। कहाँ थे हमारे देश के नेता, कहाँ  थी हमारी मीडिया और कहाँ थे हमारे बॉलीवुड स्टार। इतना काफी नहीं था की एक मुल्ले ने ये भी कह दिया कि काफिरों के साथ ऐसा ही होना चाहिए।

                                 आग भड़क गया। दंगा फ़ैल गया। मैं अपने कुछ दोस्तों के साथ हमला करने निकला।  जितने मुस्लिम दुकानें थीं, सबमे आग लगा दी; जो सामने आया, उसे मार डाला।

                                  हमलोग एक घर में घुसे। एक कोने में एक बुड्ढा, उसकी बहु, और उसकी पोती दुबके बैठे थे। मैंने तलवार के एक ही धार से बुड्ढे और उसकी बहु का काम तमाम कर दिया। मैं जैसे ही उस बच्ची को मरने जा रहा था मेरी नज़र उससे टकरा गयी।  काफी छोटी बच्ची थी। 9-10 की होगी। उसे तो शायद धर्म का मतलब भी सही से पता नहीं होगा।

                                  मैं सोच ही रहा था कि  तभी मेरा एक दोस्त उससे कोने से घसीट कर एक तरफ ले गया और उसके कपडे फाड़ने लगा। मैंने उसे रोका- " ये क्या कर रहे हो तुम ?" पर वो नहीं माना। वो बच्ची मेरी तरफ ही देख रही थी। क्यों देख रही थीं ? नहीं ! नहीं, ये नहीं होना चाहिए।  ये बर्दास्त नहीं कर सकता मैं! ये बर्दास्त नहीं कर सकता मैं ! मैंने तलवार उठायी और .......

( हाथ उठाकर वो टेबल पर मरता है। रोता है। )

मैंने अपने ही दोस्तों को मार डाला। मैं बस इतना कहना चाहता हुँ  कि मुस्लिम कट्टरपंथी बढ़ रहे है पर दंगे उसका समाधान नहीं है। हमें प्रेम से ही अपने बीच की दूरिया घटना होगा। हम अजनबी की तरह आये थे इस दुनिया में, दुश्मन की तरह नहीं जाना।

(वो झुक कर बिखरे हुए लेटर्स उठाने लगता है। वो झुकता है तो उसे अपनी पेंट की पिछली जेब में कुछ महसूस होता है। वो छोटी बोतल अपनी जेब से निकल कर हाथ में रख लेता है और फिर लेटर्स उठा कर खड़ा हो जाता है।  लेटर्स  को टेबल पर रख कर, बोतल से जहर पी जाता है। )

मैंने बेगुनाहों का क़त्ल किया हैं। मैंने उन लोगों को मारा है जिन्होंने मुझपर विश्वास कर, मेरे रास्ते पर कदम रखा था। मैं खुद को कभी माफ़ नहीं कर पाउँगा। जिससे भी ये वीडियो मिले, वो सबको जरूर दिखाए ताकि फिर कोई मेरी तरह ये गलती .....

( खाँसतें - खाँसतें  वो मर जाता है। ) 


THE END.








  

















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